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🇮🇳 62वाँ संविधान संशोधन (1989) — आरक्षण अवधि वृद्धि
62वाँ संविधान संशोधन (Constitution (Sixty-second Amendment) Act, 1989) का मुख्य उद्देश्य था लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों (SC) तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण की अवधि बढ़ाना। संविधान के अनुच्छेदों में इस प्रकार के बदलाव समय-समय पर संसद द्वारा किए जाते हैं ताकि आरक्षण संबंधित प्रावधानों की वैधता और अवधि सुनिश्चित रहे।
संक्षेप में — क्या बदला?
- 62वें संशोधन ने उस समय की प्रासंगिक संवैधानिक धाराओं के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC/ST के लिए आरक्षण की अवधि को आगे बढ़ाया।
- यह संशोधन पिछली समय-सीमाएँ (जो पहले परिभाषित थीं) को आगे बढ़ाने के लिए पारित किया गया था, ताकि आरक्षण व्यवस्था जारी रहे।
- इस प्रकार के संशोधन संविधान के समायोजन का हिस्सा हैं — वे सुनिश्चित करते हैं कि सामाजिक प्रतिनिधित्व के लिये व्यवस्थाएँ लागू बनी रहें।
क्यों आवश्यक था?
स्वतंत्रता के बाद सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन दूर करने के प्रयत्नों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण कदम माना गया। समय–समय पर आरक्षण अवधि बढ़ाना सुनिश्चित करता है कि जनसमूहों के हिस्से में उचित प्रतिनिधित्व बना रहे जब तक कि समाज-आर्थिक असमानताओं का पर्याप्त रूप से समाधान न हो।
प्रभाव
62वें संशोधन का तुरंत प्रभाव यह था कि संसद और विधानसभाओं में SC/ST प्रतिनिधित्व की व्यवस्था जारी रही और चुनावी प्रतिनिधित्व में निरंतरता बनी। दीर्घकालिक दृष्टि से, इस तरह के संशोधन सामाजिक समावेशन और समान अवसर के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं।
नागरिकों के लिए संदेश
संवैधानिक संशोधन लोकतंत्र का हिस्सा हैं — पर इन्हें समझना और इन पर चर्चा करना भी लोकतंत्र का भाग है। 62वाँ संशोधन दिखाता है कि समय के साथ संवैधानिक प्रावधानों को सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप समायोजित किया जाता है।






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