शनिवार, 30 अगस्त 2025

संविधान संशोधन (Amendments) – क्या, क्यों और कैसे?

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संविधान संशोधन (Amendments) – क्या, क्यों और कैसे?

संविधान संशोधन (Amendments) – क्या, क्यों और कैसे?

संविधान लचीला भी है और स्थायी भी — इसलिए समय-समय पर आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन (संशोधन) किए जा सकते हैं। संशोधन संविधान को बदलती सामाजिक व राजनीतिक ज़रूरतों के अनुरूप बनाए रखने का साधन है। इस लेख में हम समझेंगे कि संविधान संशोधन क्या है, क्यों किए जाते हैं, संशोधन की प्रक्रिया कैसे काम करती है, और कुछ प्रमुख संशोधनों का संक्षिप्त प्रभाव।

संशोधन क्या है?

संविधान संशोधन से आशय है संविधान के किसी प्रावधान, अनुच्छेद या आरेख में विधिक परिवर्तन करना। यह बदलाव छोटे (रूपांतर) या बड़े (संरचनात्मक) हो सकते हैं और इन्हें संसद के द्वारा अनुमोदित कर के लागू किया जाता है।

क्यों आवश्यक होते हैं संविधान संशोधन?

  • समाज और अर्थव्यवस्था में समय के साथ उत्पन्न होने वाले परिवर्तन।
  • नए कानूनी और प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करना।
  • उच्च न्यायालयों/सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के प्रभावों को संवैधानिक रूप देना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक नीतियों और सामाजिक सुधारों के लिए संवैधानिक अनुकूलन।

संशोधन की प्रक्रिया (संक्षेप)

भारतीय संविधान में संशोधन का सामान्य नियम संसद द्वारा विधेयक पेश कर के और आवश्यक बहुमत से पारित कर के होता है। परन्तु कुछ अहम प्रावधानों के संशोधन के लिए, जैसे राज्य-सम्बन्धी शक्तियों में परिवर्तन, संसद के अलावा राज्य विधानसभाओं की सहमति भी आवश्यक होती है। प्रक्रिया का संक्षेप इस प्रकार है:

  1. संशोधन विधेयक संसद में पेश किया जाता है (लोकसभा/राज्यसभा)।
  2. संदेहास्पद मामले के अनुसार सामान्य बहुमत या विशेष (संविधानिक) बहुमत द्वारा पारित।
  3. यदि आवश्यक हो तो कुछ मामलों में राज्य विधानसभाओं की मंजूरी ली जाती है।
  4. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधेयक कानून बन जाता है और संविधान में संशोधन दर्ज हो जाता है।
टिप्पणी: कुछ संशोधनों के लिए विशेष संवैधानिक बहुमत (सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत और कुल सदस्यता का अधिकांश) आवश्यक होता है — यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस अनुच्छेद या भाग में बदलाव हो रहा है।

कुछ प्रमुख संविधान संशोधन और उनके प्रभाव

  • पहला संशोधन (1951): अभिव्यक्ति पर कुछ प्रतिबंध और भूमि संबंधी नीतियों के लिए सुरक्षा।
  • बयालिसवां संशोधन (1976): मौलिक कर्तव्य जैसे प्रावधान जोड़े गए और संविधान में कई बदलाव आए।
  • एक्तिसवां संशोधन (1973): भूमि-सम्बन्धी सुधारों और संपत्ति अधिकारों के संबंध में महत्वपूर्ण परिवर्तन।
  • एक सत्तरवाँ संशोधन (1992): स्थानीय स्वशासन (पंचायत/नगरपालिका) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया (73rd & 74th)।
  • एक सौ तीसवाँ संशोधन (2019): नागरिकता से जुड़े कुछ प्रावधानों में परिवर्तन (उदाहरण के लिए CAB/NRC से सम्बंधित बहसें)।

संशोधन पर न्यायपालिका की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में संशोधनों की वैधता की समीक्षा की है। 'मूल संरचना सिद्धांत' (Basic Structure Doctrine) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ मूलभूत तत्वों को संसद भी संशोधित नहीं कर सकती — जैसे लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, या संविधान के मौलिक स्वरूप को बदलना।

निष्कर्ष

संविधान संशोधन लोकतंत्र की मजबूती का एक साधन है — यह सुनिश्चित करता है कि संविधान समय के साथ प्रासंगिक बना रहे। परंतु संशोधन की प्रक्रिया में संतुलन आवश्यक है: आवश्यक बदलाव करने चाहिए पर संविधान की मूल आत्मा और मूल संरचना का संरक्षण भी अनिवार्य है।

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✍️ Change Your Life अभियान द्वारा प्रस्तुत

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